Monday 20 February 2012

sookhi nadi

सूखी नदी
(नदी माँ )
ये जो दिख रही है
नदी सूखती हुई
जर्जरित होती
उबड़ खाबड़
झुर्राई ,पथराई सी
लुप्त धारा...
आभास दिलाती
अपने चौड़े पाटों से
बहती थी बड़ी नदी यहाँ ..
हाँ मै थी जीवन भरी .
मेरा  बचपन
बीता ,चंचल निर्झरिणी बन
यौवन अल्हड
प्रौढ़ा धीरा  गंभीर .
संततियों को
सींचा कोख से
गोद में ले
उर लगाकर
मधुर कल ध्वनि
लोरी सुना ,कर
सर्वस्व निछावर

किया पालन .
हुए बड़े वे 
चले राहअपनी
ले अलग थलग .
 ऊर्जा गई  मेरी
स्रोत  कमज़ोर
थकी हारी सी
बहती  सहती .
मुड़ के देखते
स्नेह भर अपनत्व से
फिर छलकती मै
भावना उर्मिल
भिगोती सींचती
सिक्ता कणों को
शुष्क होती नहीं
पर तुमने..
प्यास अपनी बुझाई
दुःख दर्द धोए
कलुष सौंपे मुझे
खुद बने निर्मल
सभ्य सुघड़
बना मुझे मंद मलिन .
कह मुझे शक्ति हीना .
व्यर्थ वृद्धा विरल .
कंकड़ रोड़े भरी
पथरीली  चुभती ,
राह रोकती
अडचनों सी 
लगती तुम्हें
क्योकि ...
मेरा सारा स्नेह प्यार
खपा सींचते पोषते
 अब ..                                                                                            

अश्रु  जल सूखे  सभी
आँखों में बस  किरकिरी
 कोई आये भूले से
सुध बुध लेने कभी .
रीती हुई क्यो ये नदी ?
क्यों रह गई सूखी नदी?