कुछ `तांका`
एक सूराख
कमज़ोर दीवार
संदेह छोटा
छीजते स्नेह रिश्ते
ढहते घर -द्वार .
लम्बी सड़कें
गाँव शहर मिलें
निष्ठुर लगे
कष्ट झेले तन पै
लक्ष्य मिले राही को .
गेंद का खेल
सब मनभावन
उसकी पीड़ा
जानें वृद्धजन ही
संतति बाँटें पारी .
कोमल जिह्वा
करे रसास्वादन
मधुर बोल
प्यार रस घोलती
देती अपनापन .