Wednesday 2 October 2013

माँ

माँ
प्रकृति पुरुष मिल सृष्टि रचाएँ
चिर  सत्य यही .

सूक्ष्म बीज को
रक्त कोशिका
प्राण सींच के
प्रतिलिपि अपनी
रूप अनोखा
सिरजे नारी
माँ  रूप लही..

मधुर पयस से
क्षुधा मिटाती
लोरी धुन से
सदा सजाती
स्वर्णिम भविष्य
 सोनल सपनों
की नींव यही...

कोमल ममता
स्नेहिल आँचल
अविरल क्षमता
ध्येय अविचल
विस्तृत नभ सी
सहनशीलता
 में  तुल्य मही ..

सब ईशों में
सर्वोपरि है
तीन लोक में
माँ सम दूजा
दुर्लभ, मिलता
चरणों में ही
 जो स्वर्ग  कहीं  ....