Thursday 3 November 2011

पहली किरण
लघु कथा (लोक कथा पर आधारित) एक गाँव में पुरानी प्रथा चली आ रही थी .जो भी व्यक्ति बूढा हो जाता उसे उस के घर के लोग जंगल में अकेले छोड़ आते .वह फिर जैसे तैसे जीवन जीता .घर के अ न्यलोग बिना रोक- टोक के रहते .वे मानते थे कि वृद्धावस्था में लोग व्यर्थ हो जाते हैं .परिवार को उनका बोझ उठाना पड़ता है .बूढ़े लोग हालांकि बाल बच्चों की मोह माया में ग्रस्त होते थे परन्तु इस प्रथा को नकार नहीं सकते थे । एक बार एक लड़के को अपने पिता को छोड़नाथा .पर वह अपने पिता को बहुत प्यार करता था बचपन से लेकर अब तक हर काम में पिता उसके साथ रहते थे .उसे यह बात असह्य लगी .वह सोचता रहता कि कैसे पिता को न जाने दूं .पर प्रथा को तोड़ भी नहीं सकता था .बहुत सोच विचार के बाद उसे एक युक्ति सूझी .उसने घर में एक तहखाना बनवा दिया .छुप कर रहने के सारे बंदोबस्त कर दिए ताकि किसी को भी पता न लगे .सब को उसने कह दिया कि वह अपने पिता को जंगल में छोड़ आया है । इस बात को कई वर्ष बीत गए किसी को पता न लग पाया .बेटा खुश था कि उसे अपने पिता के साथ रहने का और सेवा करने का मौका मिल रहा है । एक बार वहाँ के राजा ने एक ऐसी प्रतियोगिता रखी कि जो व्यक्ति अगली सुबह सब से पहले सूर्य की रौशनी को देखेगा उसे वह बहुत सारा धन देगा और राज दरबार में उसे ऊंचा स्थान भी देगा .सभी लोग आतुर होकर भाग लेने की तैयारी करने लगे .पर सूर्य की पहली किरण को कैसे देखें ?उस बेटे ने ये बात अपने पिता को बताई .पिता ने बेटे को समझाया कि ---`देखो बेटा! सभी लोग रात से सुबह की प्रतीक्षा में बैठ जायेंगे .जब सूरज उगेगा तभी उसकी पहली किरण दिखेगी .अगर तुम इस में भाग ले रहे हो तो वैसा करना जैसा मै तुम्हे बताऊ । सब लोग सूर्योदय की प्रतीक्षा में पूर्व की ओर मुंह करके बैठे होंगे पर तू पश्चिम की ओर मुंह कर के बैठ जाना क्योकि जैसे ही सूर्योदय होने को होगा तो उसकी पहली किरण पश्चिम की तरफ वाली पहाड़ी की चोटी पर पड़ेगी .बाकी लोग तो जब सूर्य उगेगा तभी देखेंगे परन्तु पहली किरण तू ही देखेगा क्योकि सूर्य की पहली किरण सामने की पहाड़ी को प्रकाशित करेगी .इस तरह सूर्य की पहली किरण देखने की प्रतियोगिता तू ही जीतेगा .बेटे ने वैसा ही किया .उसे ईनाम और राज दरबार में मंत्री का पद मिला .सभी गाँव वाले उसकी बुद्धिमत्ता से चकित रह गए.राजा ने भी पूछा .उसने अभय दान मांगते हुए सच्चाई बतादी .राजा खुश हुआ .उस दिन से उसने इस प्रथा का अंत कर दिया .उसने प्रजा से कहा --`` अब से किसी भी वृद्ध को अकेले नहीं छोड़ा जाएगा .वे शारीरिक रूप से कमज़ोर हो सकते हैं परन्तु जीवन के अनुभवों से हर समस्या का समाधान कर सकते हैं और भावी पीढ़ी के लिए बोझ नहीं वरदान सिद्ध हो सकते हैं ।`` अतः उनको हमेशा सम्मान मिलना चाहिए ...

2 comments:

  1. बेहद सुन्दर कहानी... मुझे याद है बचपन में मैं जापानी लोककथा में ऐसी ही एक कहानी पढ़ी थी वाहन यह प्रथा थी भी ... आज बचपन की यादे भी ताजा हो आई ...सादर

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  2. हार्दिक आभार डा ० नूतन जी आपको कहानी अच्छी लगी .जी हाँ सच कहा आपने बचपन में सुनी हुई कहानियाँ मन के किसी कोनें में बस जाती हैं ...

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