Saturday 19 April 2014

    स्मृति के  वे पल        
      दिवाकर  गुप्ता जी अपनी पत्नी नीलिमा के साथ किसी पाँच सितारा होटल नुमा   बिल्डिंग के  लाउंज में बैठे थे .उनका बेटा सुधीर अपनी बुकिंग के बारे में पूछताछ करने गया था .वे बैंगलोर से आये थे .गुप्ता जी पिछले महीने ही बैंक से रिटायर हुए थे .पूरे महीनें ऑफिस , दोस्तों  और सहकर्मियों की ओर से विदाई की पार्टियों में दिन कैसे बीते पता ही नहीं चला ..तब धीरे धीरे यह अहसास होने लगा कि अब तो रोज की भागम भाग से उन्हें छुट्टी  मिल गयी है  .लगभग चालीस- पैंतालीस वर्षों के नियम बद्ध जीवन से एकदम खालीपन  से वे कैसे  सामना कर पाएँगे .इस बारे में तो उन्होंने सोचा ही नहीं था ,या कहें कि सोचने का वक्त ही नहीं मिला था .
                               तभी सुधीर ने उन्हें  घूमने जाने की सलाह दी .हालाकि वे अपने कार्यकाल में कई बार देश विदेश की यात्रा कर चुके थे .पर सिर्फ  आनंद लेने के लिए कहीं जाना और बात थी .नीलिमा ने भी बेटे  की बात का समर्थन किया ..फिर उन्हें भी मानना ही पड़ा .
                                    सारी उम्र तो घर परिवार की फ़िक्र में ही बिताई  पहले भाई बहनों की जिम्मेदारी ,बूढ़े माता पिता की देखभाल ...इकलौते बेटे की पढाई -लिखाई में कोई कसर नहीं छोड़ी थी .अब यही सोच- विचार किया  था कि रिटायर होने के पश्चात् वे भी सुधीर के साथ रहेंगे. बहू और पोते- पोती के साथ जीवन के बाकी दिन हँसी ख़ुशी गुजरेंगे ,ईश्वर कि कृपा से रूपये पैसे की कमी नहीं थी .ऊँचे पद से रिटायर होने से पेंसन अच्छी खासी मिलने वाली थी .बेटा भी अच्छी नौकरी में था .उन्होंने अपने पद पर काम करते हुए दो मकान भी बना लिए थे .जिनसे किराये की अतिरिक्त आय आ ही रही थी .कुल मिला कर वे अपनी गृहस्थी  से संतुष्ट थे .
                                                   इन्हीं दिनों सुधीर को जब पता चला कि  माता-पिता जी अब साथ रहने आने वाले हैं तो उसने ख़ुशी तो जाहिर की थी पर मन ही मन वह असमंजस में पड़ गया  उसे तो कोई दिक्कत नहीं वरन अच्छा ही लगेगा पर उसकी पत्नी रोमा का क्या ?क्या उसे ये बात स्वीकार्य होगी ....उसे नहीं मालूम कि क्या होगा ?
                    दस वर्ष पूर्व जब रोमा उसकी जिंदगी में आई थी तब भी वह ऐसी ही स्थिति में था .साथ काम करते हुए उसे रोमा से प्यार हो गया था .उसे वह जीवन संगिनी  बनाना चाहता था .पर रोमा दूसरी जाति की थी .....और उसकी माँ ने उसके लिए एक लड़की पसंद भी कर ली थी .....बड़ी ऊहापोह के बाद उसने माँ को अपने दिल की बात बताई और फिर घर के और लोगों को ......सुनकर घर में तूफ़ान ही आ गया ....कोई राजी न हुआ था ......फिर बेटे की ज़िद थी कि शादी होगी तो रोमा से नहीं तो नहीं ..कई महीनों तक अनबन चलती रही .....
                     नीलिमा को लगा कि इस सब के बीच इकलौता बेटा भी हाथ से निकल जायेगा .....घर में सबको समझाती..कि क्या बुराई है अगर वह प्रेम विवाह करना चाहता है तो ..उसी ने साथ रहना है ...वैसे तो माँ बाप सारी जिंदगी अपनी संतान के लिए जीते हैं उनकी खुशियाँ चाहते हैं ...अब अगर उसकी ख़ुशी रोमा के साथ है तो ..हमें इज़ाज़त देनी ही चाहिए .....करीब साल भर में नीलिमा ने सबको मना ही लिया ...फिर धूम धाम से विवाह भी हो गया ......रोमा और  माँ के बीच की दूरियां कम तो हो गयी पर कहीं न कहीं रोमा के मन में ये खरोंच सी रह गयी कि इन्होने मन से नहीं अपनाया वरन बेटे के लिए ही माने थे ...कभी कभार आना जाना होता .सब कुछ ठीक से निभता ..पर प्यार की कमी रोमा को  लगती ,हालाकि रोमा ने भी खूब प्रयत्न किये थे दूरियों को पाटने के लिए ....बच्चे भी दादा दादी को प्यार करते ....पर ज्यादा दिनों तक वे साथ रहे नहीं थे ...
   और अब ? सुधीर तो चिंताग्रस्त हो गया क्या करे एक ओर माँ  -पापा एक ओर रोमा .....
                        एक दिन सुधीर ने रोमा को बता ही दिया कि अब वे साथ रहना चाहते हैं ..अब चिंतित होने की बारी रोमा की थी ..उसका रहन सहन का ढंग अलग था .काम के साथ- साथ वह क्लबों में पार्टियों में जाना पसंद करती थी ...खान पान और वेश भूषा में भी नयापन चाहती थी ...और दूसरी ओर माँ और पापा थोड़ा रूढ़िवादी थे .....कितनी मुश्किल से उसके अंतर्जातीय विवाह  की स्वीकार कर पाये थे .. दो-चार  दिन साथ रहना हो तो थोडा सामंजस्य किया जा सकता है ...अपनी आदतों में पर अधिक समय साथ रहने से आये दिन खिट - पिट ,मन -मुटाव और कहासुनी हो सकती है ..और फिर तनाव बढ़कर रिश्ते टूट भी सकते हैं जिन्हें फिर से जोड़ना आसान नहीं होगा ..रोमा यह जानती थी की उसका स्वभाव भी तेज़ सा है अतः साथ रहने में दुःख और दुविधा अधिक होगी प्यार कम....और साथ रहकर सब परिस्थितियाँ धीरे धीरे ठीक होंगीं ..इस बात में उसे विश्वास भी नहीं था ....ऐसा प्रयोग बात बिगाड़ भी देगा ..अब तक के मधुर सम्बन्ध भी ख़त्म हो सकते हैं ..
अतः रोमा ने साफ शब्दों में सुधीर को बता दिया ....की वह खुद ही सोच के फैसला ले ....कहीं बहू के चक्कर में बेटा भी बदनाम न हो जाये ..अब माँ  पापा की ख़ुशी के लिए सुधीर के पास  कोई रास्ता नहीं बचा ...पर उन्हें ये बात बताये कैसे ?
                                    इसी कारण सुधीर ने ये  घूमने का प्रोग्राम बनाया ताकि मौके की तलाश में रह पापा को यह बात बता सके ..घर में बताने से एक और सुनामी आ सकती थी ..बेटे की गैर जिम्मेदारी  बहू का सास- ससुर की उपेक्षा और न जाने क्या क्या बातों के उफान आते ..
                                           तभी सुधीर आ गया .वह उन्हें लेकर अपने कमरे  में ले आया ......कमरा क्या पूरा दो बेडरूम का फ्लैट सभी आधुनिक सुख सुविधाओं से भर पूर ......यहाँ चाहो तो होटल की तरह रूम सर्विस से काम करवा लो या अपना घर समझ कर रहो ...बालकनी से बाहर का प्राकृतिक  सौंदर्य दिल लुभाने वाला था ...
 माँ तो जगह देख कर खुश हो गयी ,,पापा भी अच्छा महसूस कर रहे थे ......चाय पानी के बाद खाना खाकर थोड़ी देर आराम किया और शाम को आस पास घूमने का निश्चय ... अगली    सुबह भी सैर कर के आये तो मन तरोताज़ा हो आया ....... तभी नीलिमा बोली अगर बहू और बच्चे भी  साथ होते तो और आनंद आता ......तभी सुधीर ने दिल पर पत्थर रख कर उन्हें पूरी बात बता दी .....वे दोनों तो हैरान हो गए .....फिर नीलिमा ही संयत होकर बोली .."..कोई बात नहीं  सुधी !हम अलग ही रह लेंगे ..बहू का नजरिया भी ठीक है बेमन से रिश्ते पनपने की बजाय नष्ट हो सकते हैं ...सही कहा रोमा ने ...रोज मन मेम विद्रोह लेने से अच्छा दूर रहकर प्रेम सिंचित हो तो अच्छा है .. ....दो मकान में से एक खाली करवा के रह लेंगे और आपस में आना जाना रहेगा .."...तब सुधीर ने  कहा ..'अगर आपको ये जगह पसंद आई है तो यहीं रह सकती हो माँ ......माँ ! पापा ! ये होटल नहीं है वरन एक ऐसी कॉलोनी है जो बुजुर्ग लोगों के लिए ही बनाई गयी है ..यहाँ वे स्वेच्छा से रह सकते हैं .उनके बेटे बहू या परिवार के अन्य सदस्य भी यहाँ रह सकते हैं पर वे स्थाई रूप से नहीं वरन अतिथि जैसे रह सकते हैं..."...
                       "  माँ पापा !मैं चाहूँ तो घर भी ले जा सकता हूँ पर मैं यह नहीं चाहता की मेरी ही पत्नी आपकी अवमानना करे या दिल से न चाहे .....इसीलिए मैं आपको यहाँ लाया हूँ हम मिलकर विचार करें कि आगे क्या करना है  ?"गुप्ता जी पहले तो नाराज़ से दिखे .....बहू की बातों से पर विचार किया तो ठीक ही लगा .....
तब निश्चित हुआ  कि....वे अपने एक मकान में अलग ही रहेंगे .....पर ये जगह भी पसंद है .....यहाँ उन्हें अपने जैसे कई लोग मिलेंगे ..अपनी उम्र के दुःख सुख के साथी ....
                    दिन भर वहाँ एक फ्लैट खरीदने की व्यस्तता में बीत गया ..हप्ते भर बाद सारी सुविधाएँ जुटा कर  कई लोगों से जान पहचान करा कर सब सुधीर आँखों में आँसू भर कर अवरुद्ध  कंठ से माफ़ी मांगने लगा तो नीलिमा जी रोते रोते मुस्कराने लगीं  गुप्ता जी ने  हैरान होते हुए पूछा ...."क्या बात है ? सुधीर की माँ ...इस बेला में हँसी कैसे ?   "
                   नीलिमा ने देखा गुप्ता जी के गाल भी आँसुओं से  भीगे थे ...वे एक रहस्यमई  मुस्कान होंठों पर लाते हुए  बेटे और पति का हाथ पकड़  कर सोफे पर बिठाते हुए बोली .......गुप्ता साहब और सुधी  याद है बर्षों पहले .....जब हम सुधीर को अपने से दूर किसी अच्छे पब्लिक स्कूल में  पढाई के लिए  ले गए थे और होस्टल में दाखिला दिला कर छोड़ आये थे ...तब रोये तो हम भी थे ,पर मन को समझा रहे थे... बेटे का भविष्य देखना है  .....और सुधीर मेरा पल्लू पकड़- पकड़ कर चीख -चीख कर रो रहा था ..मुझे साथ ले चलो मुझे नहीं रहना यहाँ तुम्हारे बिना ."
               " हम बिना पीछे  मुड़े, रोते हुए बच्चे को छोड़ आये थे ,आज फिर वही नजारा है ..हम मन में छह रहे थे  हैं कि बेटे के साथ रहें .....और वह हमारी ख़ुशी बरक़रार रहे ..बुढ़ापा बिना झिक -झिक के कटे ......यह सोचकर हमें यहाँ छोड़ कर जा रहा है ........क्या कहूँ ?क्षण भर को लगा कहीं सुधीर उस दिन का बदला तो नहीं ले रहा ...? स्मृति के वे पल मन को दोलायमान कर गए थे ..... बस यही सोचकर हँसी आ गयी थी ?"
                               यह सुनकर तीनों ही जोर से हँस पड़े  पर उनके मन विदाई के पलों में बोझिल हो रहे थे और सामने पोर्च पर सुधीर की टैक्सी आ चुकी थी सुधीर ने कस कर दोनों को बाँहों में भींच लिया और बिना मुड़े टैक्सी की ओर दौड़ गया .

(उत्तराँचल पत्रिका के अप्रैल २०१४ अंक में प्रकाशित )
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