नारी-जीवन
नदी की तरह
तटों में बंधी
जीवन बीते
उमंग हिलोरें
भाव विह्वल
बिखरी जाती
दूर दूर तक
पर मन भारी
सिमटी जाती
फिर बंधन में
पिंजरे में क़ैद
पाखी की तरह .
सब से प्यार
आदर सभी का
स्व नहीं कहीं
कभी रोष पीड़ा
तोडना चाहे सीमा
प्लावित कर डुबाना
घर बार सारा .
फिर स्वतः स्रोत. ममता
फिर उमड़ता
आँचल समेटे
फिर जुट जाती
शांत व्यस्त
गृहस्थी निभाने
अनुबंधित सदा
नारी नदी की तरह ....
नदी की तरह
तटों में बंधी
जीवन बीते
उमंग हिलोरें
भाव विह्वल
बिखरी जाती
दूर दूर तक
पर मन भारी
सिमटी जाती
फिर बंधन में
पिंजरे में क़ैद
पाखी की तरह .
सब से प्यार
आदर सभी का
स्व नहीं कहीं
कभी रोष पीड़ा
तोडना चाहे सीमा
प्लावित कर डुबाना
घर बार सारा .
फिर स्वतः स्रोत. ममता
फिर उमड़ता
आँचल समेटे
फिर जुट जाती
शांत व्यस्त
गृहस्थी निभाने
अनुबंधित सदा
नारी नदी की तरह ....
NAAARI JEEVAN KO KHUBSURATI SE BYAN KIYA AAPNE:)
ReplyDeleteAaoko rachna pasand aaii.hardik aabhaar Mukesh Kumar Sinha ji.
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