वर्षा
नभ आच्छादित
लौह पिंजरों सी कैद को
गरज- गरज टकरा के
मेघों के अंतर जगाती
स्वाधीनता के स्वर दामिनी मशाल ले
राहें खोजती
आजाद हुई जब वर्षा रानी
बूँदों की पायल पहने
झूमती नाचती
पवन संग लहराती
चहुँ ओर फैला आँचल
उतरती धरा पर
मिलती गले
सब प्राणियों से
घर आँगन, गाँव शहर
पेड़ पल्लव, उपवन -जंगल
फूल क्यारियाँ ,काँटे ,
शुष्क ठूँठ .
नदी तलैया सागर
प्यास से सूखी दरकती
धरा पर प्यार से
समभाव से
बाँटे सरसता..
धरा आत्मसात कर
फैला देती सुगंध स्नेह की
मिल दोनों जुट जाती
शस्य श्यामला हो
धरा देती अन्न
तृषा बुझाती वर्षा
सृष्टि रहे अमर
जीवित रहे मानवता ..
नभ आच्छादित
लौह पिंजरों सी कैद को
गरज- गरज टकरा के
मेघों के अंतर जगाती
स्वाधीनता के स्वर दामिनी मशाल ले
राहें खोजती
आजाद हुई जब वर्षा रानी
बूँदों की पायल पहने
झूमती नाचती
पवन संग लहराती
चहुँ ओर फैला आँचल
उतरती धरा पर
मिलती गले
सब प्राणियों से
घर आँगन, गाँव शहर
पेड़ पल्लव, उपवन -जंगल
फूल क्यारियाँ ,काँटे ,
शुष्क ठूँठ .
नदी तलैया सागर
प्यास से सूखी दरकती
धरा पर प्यार से
समभाव से
बाँटे सरसता..
धरा आत्मसात कर
फैला देती सुगंध स्नेह की
मिल दोनों जुट जाती
शस्य श्यामला हो
धरा देती अन्न
तृषा बुझाती वर्षा
सृष्टि रहे अमर
जीवित रहे मानवता ..
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